मृदा एवं मृदा के तत्व
मृदा वैज्ञानिकों के अनुसार मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्वों का समुद्र है जिसमें जीवित पदार्थ तथा पौधे को पोषित करने की क्षमता होती है।
मृदा की विशेषता क्या है ?
1. मृदा एक गतिशील माध्यम है
2. रसायनिक, भौतिक एवं जैविक क्रियाएं होती रहती है।
3. मृदा अपक्षय अपकर्ष का परिणाम और वृद्धि का माध्यम भी है।
4. मृदा परिवर्तनशील भी है
5. मृदा विकास के उन्मुख तत्व हैं।
6. मौसम के बदलने के साथ-साथ मृदा की बहुत सी विशेषताएं बदलती रहती है।
7. मृदा ठंडी और गर्म या शुष्क एवं आर्द्र हो सकती है।
तथ्य
मृदा बहुत अधिक ठंडी या बहुत अधिक शुष्क होती है तो जैविक क्रिया मंद या बंद हो जाती है।
मृदा जल वायु की दशाओं, भूआकृतियों एवं वनस्पतियों के साथ अनुकूलित होती रहती है और यदि उक्त नियंत्रक दशाओं में परिवर्तन हो जाए तो आंतरिक रूप से भी परिवर्तित हो सकती है।
पेडोलॉजी मृदा विज्ञान है एवं पेडालॉजिस्कट मृदा वैज्ञानिक होता है।
जैव पदार्थ कब बढ़ जाते हैं ?
जब मृदा में पैड़ों से पत्तियां गिरती हैं या घास सूख जाती है तो जैव पदार्थ बढ़ जाते हैं।
मौसम और निर्माण की कालावधि बदलने के साथ-साथ क्या-क्या परिवर्तन हो जाते हैं ?
1. मृदा का रसायन प्रक्रिया
2. जैव पदार्थ की मात्रा
3. पेड़ - पौधे की कमी
4. प्राणीजात, तापक्रम और नमी मे कमी
मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं कैसे होते हैं ?
1.मृदा निर्माण या मृदाजनन सर्वप्रथम अपक्षय पर निर्भर करती है।
2.अपक्षय प्रभार (अपक्षय पदार्थ की गहराई) ही मृदा निर्माण का मूल निवेश होता है।
3.सर्वप्रथम अपक्षयित प्रवार या लाए गए पदार्थों के निक्षेप, बैक्टीरिया या अन्य निकृष्ट पौधे जैसे काई एवं लाइकेन द्वारा उपनिवेशत किए जाते है।
4.प्रवार एवं निक्षेप के अंदर कई गौण जीव भी आश्रय प्राप्त कर लेते हैं।
5.जीव एवं पौधे के मृत अवशेष ह्यूमस के एकत्रीकरण में सहायक होते हैं
6.प्रारंभ में गौण घास एवं फर्न्स की वृद्धि हो सकती है बाद में पक्षियों एवं वायु द्वारा लाए गए बीजों से वृक्ष एवं झाड़ियों में वृद्धि होने लगती है ।
7.पौधों की जड़े नीचे तक घुस जाती है बिल बनाने वाले, जानवरों कणो को ऊपर लाती हैं ।
8.जिसे पदार्थों का पुंज (अंबार) छिद्रमय एवं स्पंज की तरह हो जाता है ।
9. जल - धारण करने की क्षमता वायु में प्रवेश आदि के कारण अंतत : परिपक्व, खनिज एवं उत्पाद युक्त मृदा का निर्माण होता है।
मृदा निर्माण के कारक कौन-कौन है उसकी व्याख्या करें ?
मृदा निर्माण पांच मूल कारको द्वारा नियंत्रित होता है :-
1. मूल पदार्थ (शैलें)
2. स्थलाकृति
3. जलवायु
4. जैविक क्रियाएं
5. समय
मूल पदार्थ / शैल
1. मृदा निर्माण में मूल शैल एक निष्क्रिय नियंत्रक कारक है।
2. मूल शैल कोई भी स्वस्थाने(In situ) या उसी स्थान पर अपक्षयित शैल मलवा (अवशिष्ट मृदा) या लाए गये (निक्षेप) परिवहनकृत मृदा हो सकती है।
3. मृदा निर्माण गठन (मलवा के आकार) संरचना (एकल/ पृथक कणों/ मलवा के कणों का विन्यास) तथा शैल निक्षेप के खनिज एवं रासायनिक संयोजन पर निर्भर करता है।
4. मूल पदार्थ के अंतर्गत अपक्षय की प्रकृति एवं उसकी दर तथा आवरण की गहराई / मोटाई प्रमुख तत्व हैं।
5. समान आधार शैल पर मृदाओं में अंतर हो सकता है तथा असमान आधार पर समान आधार पर समान मृदाएं मिल सकती हैं।
6. जब मृदाएं बहुत नूतन तथा पर्याप्त परिपक्व नहीं होती तो मैदान एवं मूल्यों के प्रकार में घनिष्ठ संबंध होता है।
7. कुछ चुना क्षेत्र में भी, जहां अपक्षय प्रक्रियाएं विशिष्ट एवं विचित्र होती हैं, मिटि्टयां मूल शैल से स्पष्ट संबंध दर्शाती है।
स्थलाकृति / उच्चावच
1. मूल शैल की भांति स्थलाकृति भी एक दूसरा निष्क्रिय नियंत्रक कारक है ।
2. स्थालाकृति मूल पदार्थ के आच्छादन अथवा अनावृत होने को सूर्य की किरणों के संबंध में प्रभावित करती है।
3. स्थलाकृति धरातलीय एवं उप-सतही अप्रभाव की प्रक्रिया को मूल पदार्थ के संबंध में भी प्रभावित करती है।
4. तीव्र ढ़ालो पर मृदा छिछली तथा सपाट क्षेत्रों में गहरी/मोटी होती है।
5. निम्न ढ़ालो जहां अपरदन मंद तथा जल का परिश्रवण अच्छा रहता है और मृदा निर्माण बहुत अनुकूल होता है।
6. सपाट / समतल क्षेत्रों में चीका मिट्टी के मोटे स्तर का विकास हो सकता है तथा जैव के पदार्थ के अच्छे एकत्रीकरण के साथ मिट्टी का रंग भी गहरा या काला हो सकता है।
7. मध्य अक्षांश मे दक्षिणोन्मुख सूर्य की किरणों से अनावृत ढ़ालो की वनस्पति तथा मृदा की दशा भिन्न होती है।
8. उत्तरोन्मुख ठंडे नम दशाओं वाले ढ़ालों पर अन्य प्रकार की मिट्टी एवं वनस्पति मिलती है।
जलवायु
जल वायु मृदा निर्माण में एक महत्वपूर्ण सक्रिय कारक है
मृदा के विकास में संलग्न जलवायवी भी तत्वों में प्रमुख है।
प्रवणता, वर्षा एवं वाष्पीकरण की बारंबारता व अवधि एवं आद्रता तापक्रम में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता।
जैविक क्रियाएं
1. वनस्पति आवरण एवं जीव जो मूल पदार्थों पर प्रारंभ तथा बाद में भी विद्यमान रहते हैं।
2. मृदा में जैव पदार्थ, नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन इत्यादि जोड़ने में सहायक होते हैं।
3. मृत पौधो मृदा को सूक्ष्म जैव पदार्थ-ह्यूमस प्रदान करते हैं।
4. कुछ जैविक अम्ल जो ह्यूमस बनने की अवधि में निर्मित होते हैं मृदा के मूल पदार्थों के खनिजों के विनियोजन में सहायता करते हैं।
5. बैक्टीरियल कार्य की गहनता ठंडी एवं गर्म जलवायु मिट्टी में अंतर को दर्शाती है।
6. ठंडी जलवायु में ह्यूमस एकत्रित हो जाता है, क्योंकि यहां बैक्टीरियल वृद्धि धीमी होती है।
7. उप-आर्कटिक एवं टुंड्रा जलवायु में निम्न बैक्टीरियल क्रियाओं के कारण आयोजित जैविक पदार्थ के साथ पीट के सस्तर विकसित हो जाते हैं।
8. आर्द्र,उष्ण एवं भूमध्य रेखीय जलवायु में बैक्टेरियल वृद्धि एवं क्रियाएं सघन होती है तथा मृत वनस्पति शीघ्रता से ऑक्सीकृत हो जाती है जिससे मृदा में ह्युमस की मात्रा बहुत कम रह जाती है।
नाइट्रोजन किस प्रकार जैविक क्रिया के द्वारा मिट्टी के निर्माण में सहायक होता है ?
1. बैक्टीरिया एवं मृदा के जीव हवा से गैसीय नाइट्रोजन प्राप्त कर उसे रासायनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं जिसका पौधे द्वारा उपयोग किया जा सकता है इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन निर्धारण कहते हैं।
2. राइजोबियम एक प्रकार का बैक्टीरिया जंतुु वाली पौधे के जड़ ग्रंथिका मे रहता है तथा मेजबान पौधों केेे लिए लाभकारी नाइट्रोजन निर्धारित करता है।
कीटों किस प्रकार से मृदा निर्माण में सहायक सिद्ध होता है ?
1. चींटी, दीमक, केंचुए,कृतंक इत्यादि कीटों का महत्व अभियांत्रिकी सा होता है, परंतु मृदा निर्माण में यह महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे मृदा को बार-बार ऊपर नीचे करते रहते हैं।
2. केंचुए मिट्टी खाते हैं अतः उनके शरीर से निकलने वाली मिट्टी का गठन एवं रसायन परिवर्तित हो जाता है।
कालावधि या समय
1. मृदा निर्माण में कालावधी तीसरा महत्वपूर्ण कारक है।
2. मृदा निर्माण प्रक्रियाओं के प्रचलन में लगने वाले काल (समय) की अवधि मृदा की परिपक्वता एवं उसके पाश्विका का विकास निर्धारण करती है।
3. एक मृदा तभी परिपक्व होती है जब मृदा निर्माण की सभी प्रक्रियाएं लंबे काल तक पाश्विका विकास करते हुए कार्यरत रहती है।
4. थोड़े समय पहले निक्षेपित जलोढ़ मिट्टी या हिमानी टिल से विकसित मृदाएं तरुण या युवा मानी जाती हैं तथा उनमें संस्तर का अभाव होता है अथवा कम विकसित संस्तर मिलता है।
5. संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में मिट्टी के विकास या उसकी परिपक्वता के लिए कोई विशिष्ट कालावधि नहीं है।